यह मनुज की जिन्दगी, कैसी अजब है जिन्दगी
साहस के सोपान चढ़, करती गजब है जिन्दगी
साहस के सोपान चढ़, करती गजब है जिन्दगी
जब जिन्दादिली का नाम जिन्दगी,क्यों नफरत का अंजाम जिन्दगी
जहाँ हो मैत्री कृष्ण सुदामा जैसी ,क्यों दुश्मनी बुश-सदाम जिन्दगी
कभी शान्ति दूत बन आते गांधी , देती अहिंसा का पैगाम जिन्दगी
फिर क्यों हिटलर मुसोलिनी बनकर, करते हैं कत्ले-आम जिन्दगी
बन विलासिता की पात्र कभी, क्यों देती है सबब शर्मिन्दगी
यह मनुज की जिन्दगी !
कितना भरा है जोश इसमें,फिर क्यों है खामोश जिन्दगी
संकट में न खोती होश जो, क्यों बनती मदहौश जिन्दगी
बेहद भरा है संतोष इसमे, फिर क्यों दर्शाती रोष जिन्दगी
यह तो है आशुतोष फिर, क्यों रहती मन मसोस जिन्दगी
यह धन्य होती है तभी, जब करती है प्रभु की बंदगी
यह मनुज की जिन्दगी !
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